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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरिश्क-ए-चश्म-ए-मुस्लिम में है नैसाँ का असर पैदा
ख़लीलुल्लाह के दरिया में होंगे फिर गुहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी तेरी है बे-रोज़-ओ-शब-ओ-फ़र्दा-ओ-दोश
ज़िंदगी का राज़ क्या है सल्तनत क्या चीज़ है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये ख़ामोशी कहाँ तक लज़्ज़त-ए-फ़रियाद पैदा कर
ज़मीं पर तू हो और तेरी सदा हो आसमानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो वादा-ए-फ़र्दा पर अब टल नहीं सकते हैं
मुमकिन है कि कुछ अर्सा इस जश्न पे टल जाएँ