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नज़्म
डाकुओं के दौर में परहेज़-गारी जुर्म है
जब हुकूमत ख़ाम हो तो पुख़्ता-कारी जुर्म है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वतन की अंजुमन में शम' बन के रौशनी दी है
पिघल कर क़ौम को मैं ने बड़ी आसूदगी दी है
बनो ताहिरा सईद
नज़्म
शहादतों के रम्ज़ पर सिंघार भी लुटा गया
जो मुड़ के देखता हूँ फ़ाख़्ता का अहमरीं लहू
अम्बर बहराईची
नज़्म
शाज़िया अकबर
नज़्म
सवाल बच्चे ने जो किए थे
जवाब उन का दबी ज़बाँ से वही दिया है जो मुझ को अज्दाद से मिला था