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नज़्म
निकल के आए हैं मज़दूर कार-ख़ानों से
और उन की पुश्त पे अफ़्सुर्दा खोलीयों की क़तार
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
सब अपनी अपनी किताब की रू से अपने बारे में बा-ख़बर हैं
तो फिर हमारे ही पुश्त पर हाथ क्यूँ बंधे हैं