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नज़्म
गर कभी ख़ल्वत मयस्सर हो तो पूछ अल्लाह से
क़िस्सा-ए-आदम को रंगीं कर गया किस का लहू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न पूछ 'इक़बाल' का ठिकाना अभी वही कैफ़ियत है उस की
कहीं सर-ए-राहगुज़ार बैठा सितम-कश-ए-इंतिज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझ रिंद-ए-हुस्न-कार की मय-ख़्वारियाँ न पूछ
इस ख़्वाब-ए-जाँ-फ़रोज़ की बेदारियाँ न पूछ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
पूछ लो इस से तुम्हारा नाम क्यूँ ताबिंदा है
'डायर'-ए-गुर्ग-ए-दहन-आलूद अब भी ज़िंदा है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुझ से मत पूछ ''मिरे हुस्न में क्या रक्खा है''
आँख से पर्दा-ए-ज़ुल्मात उठा रक्खा है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं ने घबरा के ये पूछा कि ये हालत क्यूँ है
तेरी हस्ती हदफ़-ए-रंज-ओ-मुसीबत क्यूँ है