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नज़्म
राहत हो या कि रंज ख़ुशी हो कि इंतिशार
वाजिब हर एक रंग में है शुक्र-ए-किर्दगार
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
हम तो मजबूर थे इस दिल से कि जिस की ज़िद पर
हम ने उस रात के माथे पे सहर की तहरीर