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नज़्म
रह-ए-मंज़िल में एहसास-ए-फ़ना आग़ाज़-ए-मंज़िल है
अयाँ हर बुल-हवस पर राज़-ए-कैफ़-ओ-कम नहीं करते
मुनीर वाहिदी
नज़्म
सीटियाँ बजने लगीं ख़िदमत-ए-सरकार बजा लाना है
और सरकार ही ख़ुद संग-ए-रह-ए-मंज़िल है
मोहम्मद दीन तासीर
नज़्म
रह-गुज़र, साए, शजर, मंज़िल-ओ-दर, हल्का-ए-बाम
बाम पर सीना-ए-महताब खुला, आहिस्ता
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फ़रेब-ए-आरज़ू ने कर दिया गुम-गश्ता-ए-मंज़िल
कि गर्द-ए-राह भी संग-ए-निशाँ मालूम होती है