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नज़्म
जब किसी के गेसू-ए-पुर-ख़म की सौदाई थी तू
और लब-ए-साहिल पे रौज़ा की तमाशाई थी तू
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पहाड़ों से वो उतरे क़ाफ़िले रोज़ा-गुज़ारूँ के
गया गरमी का 'मौसम और आए दिन बहारों के