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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिरा रोना नहीं रोना है ये सारे गुलिस्ताँ का
वो गुल हूँ मैं ख़िज़ाँ हर गुल की है गोया ख़िज़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ग़ुर्बत है वही अफ़्लास वही रोना है वही बेकारी का
मेहनत की अभी तक क़द्र नहीं मेहनत का अभी तक मोल नहीं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अब हम ने कभी खाना खा कर कपड़ों से हाथ नहीं पोंछे
देखो कई दिन से धोबी ने रोना चिल्लाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
जाती है उन की क़ब्र पे जिस-दम मिरी निगाह
रोता हूँ जब तो मैं यही कह कह के दिल में आह