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नज़्म
फुर्तियाँ चूहों की हैं बिल्ली की तर्रारी के साथ
आप रोकें ख़्वाह कितनी ही सितमगारी के साथ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
महीने भर के रोज़ों ब'अद हक़ ने दिन ये दिखलाया
अलल-ऐलान खाया दोस्तों के साथ जो पाया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सोफ़ों पे अगर नाचें डैडी हमें मत रोको
कुछ अपनी भी इज़्ज़त है हर बात पे मत टोको
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
अब मुझ को यहाँ से जाना है पुर-शौक़ निगाहो मत रोको
ओ मेरे गले में लटकी हुई लचकीली बाहो मत रोको