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नज़्म
शाइर-ए-आज़म है और एज़ाज़ का तालिब है वो
है ग़लत-गो फिर भी हर इक सिंफ़ में साइब है वो
नुसरत मेहदी
नज़्म
ऐसे पैकर को मोहब्बत का जहाँ कहते हैं
सादा इक लफ़्ज़ में हम सब उसे माँ कहते हैं