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नज़्म
अगर उस्मानियों पर कोह-ए-ग़म टूटा तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-सद-हज़ार-अंजुम से होती है सहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब-ए-शब!
कोह-ए-इज़म को दे गया रंग-ब-रंग तैलिसाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरा ये जुर्म कि मैं साहब-ए-इदराक-ओ-शुऊर
मेरा ये ऐब कि इक शाइर ओ फ़नकार हूँ मैं