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नज़्म
ज़ालिमों को रोक दे जो पल में उन की टोह से
नाक़ा-ए-सालेह करे पैदा जो बत्न-ए-कोह से
मिस्दाक़ आज़मी
नज़्म
ऐ जवाँ-साल-ए-जहाँ जान-ए-जहान-ए-ज़िंदगी
सारबान-ए-ज़िंदगी रूह-ए-रवान-ए-ज़िंदगी!
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को
तमन्ना रक़्स करती है तख़य्युल गुनगुनाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
बहम दस्त-ओ-गरेबाँ सेल्ज़-मैन और उन के गाहक हैं
वो ग़ुल बरपा है जैसे नग़्मा-ज़न जौहड़ में मेंडक हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
फिर लीडरों की होगी अखाड़ों में रेल-पेल
वोटों की हर दुकान पे होगी ग्रांड सेल
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
इन्ही महरूम-ए-अज़ल राहिबों मा'बद के निगहबानों में
इन मह-ओ-साल-ए-यक-आहंग के ऐवानों में
नून मीम राशिद
नज़्म
मेरे इक साले की इक ससुराल का इक रिश्ता-दार
अपनी कोशिश से मुलाज़िम हो गया था एक बार