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नज़्म
उर्दू के तअ'ल्लुक़ से कुछ भेद नहीं खुलता
ये जश्न ये हंगामा ख़िदमत है कि साज़िश है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मेरे सहन में दुश्मन की साज़िश रक़्साँ है
सुना है अब इस हाल में मुझ को छोड़ के तुम जाने वाले हो
सलीम कौसर
नज़्म
नाम ले कर देश-भक्ति का जो ख़ूँ-रेज़ी करे
कैसी साज़िश कैसी नफ़रत उस दिल-ए-क़ातिल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
निगाह-ए-बद से देखा है किसी ने गर गुलिस्ताँ को
तो गुल-ची की हर इक साज़िश हमीं को साज़गार आई