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नज़्म
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नेमतें सब बट चुकीं लेकिन न होना मुज़्महिल
सब को बख़्शे हैं दिमाग़ और ले तुझे देते हैं दिल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
की बीनाई का मसरफ़ था... वो लब दो चार दिन पहले
मिरे माथे पे हो कर सब्त जो कहते थे'' तुम जाओ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
हवा लहरों पे लिखती है तो पानी पर तहरीर करता है
कि हम फ़रज़ंद-ए-आदम की तरह सब नक़्श-गर हैं
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
दश्त-ओ-दमन में कोह कमर में बिखरे हुए हैं फूल ही फूल
रु-ए-निगार-ए-गीती पर हैं सब्त मिरे बोसों के निशाँ