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नज़्म
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आह ये दस्त-ए-जफ़ा जो ऐ गुल-ए-रंगीं नहीं
किस तरह तुझ को ये समझाऊँ कि मैं गुलचीं नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम्हारी ज़ुल्फ़ से महकी हुई रातों में खो जाऊँ
इसे मैं कैसे समझाऊँ कि अब ये साँस का डोरा
वसीम बरेलवी
नज़्म
कैसे समझाऊँ कि उल्फ़त ही नहीं हासिल-ए-उम्र
हासिल-ए-उम्र इस उल्फ़त का मुदावा भी तो है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
मिरी हमराज़ किरनें तुझ को मैं अब कैसे समझाऊँ
तेरी आग़ोश को इन ख़ुशबुओं से कैसे महकाऊँ
सूफ़िया अनजुम ताज
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात