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नज़्म
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़िक्र यूसुफ़ का तो क्या कीजे तिरी सरकार में
ख़ुद ज़ुलेख़ा आ के बिकती है तिरे बाज़ार में
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं ने जो ग़ैब की सरकार से माँगा वो मिला
जो अक़ीदा था मिरे दिल का हिलाए न हिला