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नज़्म
सताने को सता ले आज ज़ालिम जितना जी चाहे
मगर इतना कहे देते हैं फ़र्दा-ए-वतन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
पीर वो जो रेस के घोड़ों पे रखते हैं नज़र
वही नाज़िल होती है सट्टे की जिन के क़ल्ब पर
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
क़ासिम याक़ूब
नज़्म
और जिन झरनों-भरे सरसब्ज़ कोहिस्तानों में
वो लेती है अंगड़ाइयाँ अपनी सहेलियों के साथ
तैमूर शाहिद
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर