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नज़्म
इस में क्या शक है कि मोहकम है ये इबलीसी निज़ाम
पुख़्ता-तर इस से हुए ख़ू-ए-ग़ुलामी में अवाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किन किन रियाज़तों से गुज़ारे हैं माह-ओ-साल
देखी तुम्हारी शक्ल जब ऐ मेरे नौनिहाल
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
लो वो चाह-ए-शब से निकला पिछले-पहर पीला महताब
ज़ेहन ने खोली रुकते रुकते माज़ी की पारीना किताब
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
बे-शक पढ़ाई है सवा और वक़्त है थोड़ा रहा
है ऐसी मुश्किल बात क्या मेहनत करो मेहनत करो
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
आग के अंदर और तपिश है, आग के बाहर और ही आँच
शायद कोई दिवाना होगा बे-शक चाक-गिरेबाँ था