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नज़्म
बरसात का मौसम रात अँधेरी दिल पे भी हैबत छाई हुई
था पेड़ नज़र आता न कोई घिर घिर घटा थी आई हुई
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
मुझ में ऐ यार मिरे कोई कमालात न देख
ख़्वाब वो हूँ जो कभी भी न हक़ीक़त में ढला
विनोद कुमार त्रिपाठी बशर
नज़्म
जब दिन ढल जाता है, सूरज धरती की ओट में हो जाता है
और भिड़ों के छत्ते जैसी भिन-भिन
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
बाँस की कोंपलों की तरह रात की रात बढ़ती हुई लड़कियो
आइने के हर इक ज़ाविए से उलझती हुई लड़कियो
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम