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नज़्म
वही इक हुस्न है लेकिन नज़र आता है हर शय में
ये शीरीं भी है गोया बे-सुतूँ भी कोहकन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्का सा ख़ुमार
वो मिरे नग़्म-ए-शीरीं का असर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुर्ग़-ज़ारों में दिखाती जू-ए-शीरीं का ख़िराम
वादियों में अब्र के मानिंद मंडलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इल्म से रहती है पाबंद-ए-शिकन जिस की जबीं
नाज़ से शानों पर उस की ज़ुल्फ़ लहराती नहीं