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नज़्म
मुजरिमों के वास्ते ज़ेबा नहीं ये शोर-ओ-शैन
कल 'यज़ीद' ओ 'शिम्र' थे और आज बनते हो 'हुसैन'
जोश मलीहाबादी
नज़्म
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
थी नज़र हैराँ कि ये दरिया है या तस्वीर-ए-आब
जैसे गहवारे में सो जाता है तिफ़्ल-ए-शीर-ख़्वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ शुआ-ए-अर्ज़-ए-मशरिक़ तेरी इफ़्फ़त का शिआर
कज करेगा मुल्क ओ मिल्लत की कुलाह-ए-इफ़्तिख़ार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क्या अच्छा ख़ुश-बाश जवाँ था जाने क्यूँ बीमार हुआ
उठते बैठते मीर की बैतें पढ़ना उस का शिआर हुआ
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अगर तुम मुस्तइ'द्दी को बना लोगे शिआर अपना
यक़ीं जानो कि मुस्तक़बिल है बेहद शानदार अपना
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
शिआर की जो मुदारात-ए-क़ामत-ए-जानाँ
किया है 'फ़ैज़' दर-ए-दिल दर-ए-फ़लक से बुलंद