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नज़्म
दर्द की सीप में एक भी बूँद मोती नहीं बन सकी
दिल के कश्कोल में एक सिक्का मसर्रत का खनका नहीं
रफ़ीआ शबनम आबिदी
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात