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नज़्म
कुछ ऐसा है ये मैं जो हूँ ये मैं अपने सिवा हूँ ''मैं''
सो अपने आप में शायद नहीं वाक़े हुआ हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मेरे माज़ी को अंधेरे में दबा रहने दो
मेरा माज़ी मिरी ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फिर भी होंटों पे कोई शिकवा गिला कुछ भी नहीं
मेरे दिन रात की मेहनत का सिला कुछ भी नहीं
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
और होंगे जिन्हें रहता है मुक़द्दर से गिला
और होंगे जिन्हें मिलता नहीं मेहनत का सिला
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
सिला-ए-दार-ओ-रसन हक़ के रसूलों के लिए
क़स्र-ए-शद्दाद के दर बंद हैं भूखों के लिए
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
सिला था तेरी रियाज़त का सुब्ह-ए-आज़ादी
वो सुब्ह जिस को ग़ुलामों ने नंग-ए-शाम किया
रविश सिद्दीक़ी
नज़्म
तैश में आकर फ़रिश्तों से किया तब यूँ ख़िताब
ज़िंदगी भर की रियाज़त का सिला ये है जनाब