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नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
कुछ काम न आवेगा तेरे ये लाल-ओ-जमुर्रद सीम-ओ-ज़र
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सीम-ओ-ज़र नान-ओ-नमक आब-ओ-ग़िज़ा कुछ भी नहीं
घर में इक ख़ामोश मातम के सिवा कुछ भी नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
परवीन शाकिर
नज़्म
अभी दिमाग़ पे क़हबा-ए-सीम-ओ-ज़र है सवार
अभी रुकी ही नहीं तेशा-ज़न के ख़ून की धार
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
गर्दूं पे जो आया तो गर्दूं दरिया की तरह लहराने लगा
सिमटी जो घटा तारीकी में चाँदी के सफ़ीने ले के चला
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सीम-ओ-ज़र का देवता जिस जा कभी सोता नहीं
ज़िंदगी का भूल कर जिस जा गुज़र होता नहीं
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
एक ने दुनिया के पौदे बाग़ में अपने लगाए
एक ने छोड़े दफ़ीने सीम-ओ-ज़र के बे-शुमार