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नज़्म
सो गई रास्ता तक तक के हर इक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिए क़दमों के सुराग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सागर से उभरी लहर हूँ मैं सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रूह का सपना हूँ मिट्टी में फिर सो जाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हमें इस रन में कुछ भी हो किसी जानिब तो होना है
सो हम भी इस नफ़स तक हैं सिपाही एक लश्कर के
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा