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नज़्म
क्या बर्तन सोने चाँदी के क्या मिट्टी की हंडिया चीनी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चले गा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तिरे सोफ़े हैं अफ़रंगी तिरे क़ालीं हैं ईरानी
लहू मुझ को रुलाती है जवानों की तन-आसानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस की नौमीदी से हो सोज़-ए-दरून-ए-काएनात
उस के हक़ में तक़्नतू अच्छा है या ला-तक़्नतू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस के हंगामों में हो इबलीस का सोज़-ए-दरूँ
जिस की शाख़ें हों हमारी आबियारी से बुलंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इक आदमी हैं जिन के ये कुछ ज़र्क़-बर्क़ हैं
रूपे के जिन के पाँव हैं सोने के फ़र्क़ हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिन के हंगामे अभी दरिया में सोते हैं ख़मोश
कश्ती-ए-मिस्कीन-ओ-जान-ए-पाक-ओ-दीवार-ए-यतीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जलाना है मुझे हर शम-ए-दिल को सोज़-ए-पिन्हाँ से
तिरी तारीक रातों में चराग़ाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग
उसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है अगर अर्ज़ां तो ये समझो अजल कुछ भी नहीं
जिस तरह सोने से जीने में ख़लल कुछ भी नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दीद तेरी आँख को उस हुस्न की मंज़ूर है
बन के सोज़-ए-ज़िंदगी हर शय में जो मस्तूर है