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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
'ज़रयून' को आ के सुला क्यूँ न जा''
तुम्हारे ब्याह में शजरा पढ़ा जाना था नौशा वास्ती दूल्हा
जौन एलिया
नज़्म
मा'सूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीक न माँगेगा
हक़ माँगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उफ़ुक़ पे डूबते दिन की झपकती हैं आँखें
ख़मोश सोज़-ए-दरूँ से सुलग रही है ये शाम!