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नज़्म
ईद के दिन मुस्तफ़ा से यूँ लगे कहने 'हुसैन'
सब्ज़ जोड़ा दो 'हसन' को सुर्ख़ दो जोड़ा मुझे
जौन एलिया
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
आज तक सुर्ख़ ओ सियह सदियों के साए के तले
आदम ओ हव्वा की औलाद पे क्या गुज़री है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये सुर्ख़ सुर्ख़ फूल हैं कि ज़ख़्म हैं बहार के
ये ओस की फुवार हैं, कि रो रहा है आसमाँ
आमिर उस्मानी
नज़्म
सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब-ए-शब!
कोह-ए-इज़म को दे गया रंग-ब-रंग तैलिसाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब मुझे तेरी मौजूदगी चाहिए
अपने साटन में सहमे हुए सुर्ख़ पैरों को अब मेरे हाथों पे रख
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
कैसे बहकी हुई नज़रों के तअय्युश के लिए
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे