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नज़्म
ज़ख़्म से उठने वाली टीसें ओस की ठंडक पीती हैं
आज न पूछो दुखने लगी है सुरमे से क्यूँ उस की आँख
अली अकबर नातिक़
नज़्म
में हैं धनक क़ौसें न मसकारे से पलकों को शब की स्याही दी
न सुरमे से बनाई तूर सी आँखें
सादिया सफ़दर सादी
नज़्म
ऐ सूर-ए-हुब्ब-ए-क़ौमी इस ख़्वाब से जगा दे
भूला हुआ फ़साना कानों को फिर सुना दे
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
अहल-ए-दिल जो आज गोशा-गीर-ओ-सुर्मा-दर-गुलू
अब तना ता-हू भी ग़ाएब और या-रब हा भी गुम
नून मीम राशिद
नज़्म
दौलत की आँखों का सुर्मा बनता है हमारी हड्डी से
मंदिर के दिए भी जलते हैं मज़दूर की पिघली चर्बी से