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नज़्म
एक शब तो तब’-ए-मौज़ूँ ने उड़ा दी नींद भी
और दिमाग़ ओ क़ल्ब की रग रग फड़कने लग गई
बर्क़ आशियान्वी
नज़्म
वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तो दिल ताब-ए-नशात-ए-बज़्म-ए-इशरत ला नहीं सकता
मैं चाहूँ भी तो ख़्वाब-आवर तराने गा नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझे नफ़रत नहीं पाज़ेब की झंकार से लेकिन
अभी ताब-ए-नशात-ए-रक़्स-ए-महफ़िल ला नहीं सकता
सलाम मछली शहरी
नज़्म
गिरामी-क़द्र भी ज़ी-तमकनत भी मोहतरम भी हैं
तब-व-ताब-ए-चमन भी ज़ौक़-ए-तमकीन-ए-बहाराँ भी
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
तू है ना-महरम-ए-ताब-ओ-तप-ए-बातिन वर्ना
तेरी आहों से पिघल जाए सितारों का वुजूद