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नज़्म
सिनान ओ गुर्ज़ ओ शमशीर ओ तबर ख़ंजर नहीं लाज़िम
बस इक एहसास लाज़िम है कि हम बुअदैन हैं दोनों
जौन एलिया
नज़्म
शमशीर तबर बंदूक़ सिनाँ और नश्तर तीर नहरनी है
याँ जैसी जैसी करनी है फिर वैसी वैसी भरनी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अपनों के लिए जाम-ओ-सहबा औरों के लिए शमशीर-ओ-तबर
नर्द-ओ-इंसाँ टपती ही रही दुनिया की बिसात-ए-ताक़त पर
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
ला, तबर ख़ून के दरिया में नहाने दे मुझे
सर-ए-पुर-नख़वत-ए-अर्बाब-ए-ज़माँ तोडूँगा
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
ये तुम ने किस लिए तेग़-ओ-तबर से काम लिया
तुम्हारे हाथों में ख़ंजर हैं किस लिए यारो
नाज़िश प्रतापगढ़ी
नज़्म
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
किस को देते हैं भला दार-ओ-रसन की धमकी
क्या डराते हो कि हम तीर-ओ-तबर रखते हैं
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या
आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या