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नज़्म
ख़बर देती है तहरीक-ए-हवा तबदील-ए-मौसम की
खिलेंगे और ही गुल ज़मज़मे बुलबुल के कम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
अभी हैं शहर की तारीक गलियाँ मुंतज़िर मेरी
अभी है इक हसीं तहरीक-ए-तूफ़ाँ मुंतज़िर मेरी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं ने देखा है शिकस्त-ए-साज़-ए-उल्फ़त का समाँ
अब किसी तहरीक पर बरबत उठा सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुरक़्क़ा' है हसीं तहरीक-ए-अफ़्सानी के ख़ाकों का
मुकम्मल इज्तिमा-ए-गौहर-ए-अय्याम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
हर इक तहरीक इस की तर्जुमान जज़्ब-ए-कामिल है
कि हर आहंग-ए-उर्दू हमनवा-ए-बरबत-ए-दिल है
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
आवाज़ जिसे हम कहते हैं तहरीक है ये कुछ शक्लों की
हम जिन को समझते हैं शक्लें ठहरी हुई कुछ आवाज़ें हैं
ज़ेब उस्मानिया
नज़्म
हम इस के ज़ौक़ से हुए अफ़्सोस मुन्हरिफ़
आज़ादी की तहरीक की उर्दू ही जान है