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नज़्म
कि टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें बनी थीं कुछ जिस में
ये हर्फ़ थे जिन्हें मैं ने लिक्खा था पहले-पहल
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
कुत्तों की दुम टेढ़ी क्यूँ होती है
ये चितकबरी दुनिया जिस का कोई भी किरदार नहीं है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
बस ये समझ में नहीं आता कि कहा क्या है और सुना क्या है
वैसे ये समझे समझाने वाली बात भी टेढ़ी ख़ैर है
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
शाइस्ता हबीब
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
मैं टेढ़ी पस्ली का गुस्ताख़ जनम हूँ
जिस के हल्क़ों में बद-तहज़ीब चीख़ों का हुजूम