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नज़्म
शाइस्ता हबीब
नज़्म
शाइस्ता हबीब
नज़्म
ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या
आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल, नज़र, ज़ेहन, ख़यालात, उसूल ओ अक़दार
सब के सब इस की तग-ओ-ताज़ से लर्ज़ां तरसाँ