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नज़्म
यहाँ से दोस्ती की कितनी तामीरें उठाई हैं
रफ़ाक़त की हयात-अफ़रोज़ दुनियाएँ बसाई हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
फ़र्श-ए-मरमर पे गिरी गिर के उठी उठ के झुकी
ख़ुश्क होंटों पे ज़बाँ फेर के पानी माँगा