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नज़्म
ये हिन्दी वो ख़ुरासानी ये अफ़्ग़ानी वो तूरानी
तू ऐ शर्मिंदा-ए-साहिल उछल कर बे-कराँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शराब आँखों से ढल रही है, नज़र से मस्ती उबल रही है
छलक रही है उछल रही है, पिए हुए हैं पिला रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
और मिरी आँखों से ओझल हो रहे हैं लम्हा लम्हा
मैं पुराना सा कोई इंसान हूँ, महसूस ये होता है मुझ को
कुमार पाशी
नज़्म
दिल ख़ुशी से कभी पहलू में उछल पड़ता था
हो मुबारक ये कभी मुँह से निकल पड़ता था