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नज़्म
आज पुरानी तदबीरों से आग के शो'ले थम न सकेंगे
उभरे जज़्बे दब न सकेंगे उखड़े परचम जम न सकेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़मीं से उखड़े जाते हैं दरख़्तों के क़दम पैहम
चटानें रूप बदले ज़ेर-ए-लब कुछ पढ़ती जाती हैं
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
पर मुसीबत है मिरा अहद-ए-वफ़ा मेरे लिए
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ