आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "vaasil"
नज़्म के संबंधित परिणाम "vaasil"
नज़्म
वासिल-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद न होते क्यूँकर
फ़रस-ए-इश्क़ पे असवार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
तो वासिल-इब्न-ए-अता की बातें जो रज़्म-गाह-ए-कलाम-अंदर
चुनी गई थीं समाअ'तों ने कभी सुनी हैं
इलियास बाबर आवान
नज़्म
इसी से फ़ैज़ पाते हैं ज़माने के सभी वासिल
इसी से फ़ैज़ पाते हैं ज़माने के सभी वासिल
प्रेम पाल अश्क
नज़्म
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आलम-ए-सोज़-ओ-साज़ में वस्ल से बढ़ के है फ़िराक़
वस्ल में मर्ग-ए-आरज़ू! हिज्र में ल़ज़्जत-ए-तलब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लिखा गया है बहुत लुतफ़-ए-वस्ल ओ दर्द-ए-फ़िराक़
मगर ये कैफ़ियत अपनी रक़म नहीं है कहीं