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नज़्म
तो ज़र-निगार पल्लुवों से झाँकती कलाइयों की तेज़ नब्ज़ रुक गई
वो बोलर एक मह-वशों के जमघटों में घिर गया
मजीद अमजद
नज़्म
मह-वशों का तरब-अंगेज़ तबस्सुम क्या है
है तो सब कुछ ये मगर ख़्वाब असर क्यूँ हो जाए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हसीनों मह-वशों को अब सर-ए-बाज़ार देखेंगे
गए वो दिन कि कहते थे पस-अज़-इफ़्तार देखेंगे
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हर तअल्लुक़ तोड़ रक्खा है हिलाल-ए-ईद से
तुझ को फ़ुर्सत ही नहीं है मह-वशों की दीद से
खालिद इरफ़ान
नज़्म
तुम नन्ही बुनियादें हो दुनिया के नए विधान की
बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दोस्तान की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़तीब-ए-आज़म अरब का नग़्मा अजम की लय में सुना रहा है
सर-ए-चमन चहचहा रहा है सर-ए-विग़ा मुस्कुरा रहा है
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
एक इक बच्चा रहे बढ़ चढ़ के गुन और ज्ञान में
इक से इक बढ़ कर दिखाए आप को विज्ञान में
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
यहाँ तक कि पालतू पशू का भी विछोह
हृदय में इतनी पीड़ा इतना विषाद भर देता है कि