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नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सो ज़ाहिर है इसे शय से ज़ियादा मानता हूँ मैं
तुम्हें हो सुब्ह-दम तौफ़ीक़ बस अख़बार पढ़ने की
जौन एलिया
नज़्म
कनार अज़ ज़ाहिदाँ बर-गीर ओ बेबाकाना साग़र-कश
पस अज़ मुद्दत अज़ीं शाख़-ए-कुहन बाँग-ए-हज़ार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मोहसिन नक़वी
नज़्म
मिरा यक़ीं न रहा मुझ पे हो गया ज़ाहिर
कि भटकी रूहों को जुगनू नहीं दिखाते चराग़
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अस्बाब-ए-ज़ाहिरी में न इन पर करो नज़र
क्या जाने क्या है पर्दा-ए-क़ुदरत में जल्वा-गर
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
इम्तिहान-ए-दीदा-ए-ज़ाहिर में कोहिस्ताँ है तू
पासबाँ अपना है तू दीवार-ए-हिन्दुस्ताँ है तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बिन ज़ाहिर किए तमाम एहसासात जो परख लेती थी
मेरे लिए जो हर कहानी हर एक क़िस्से में थी
आमिर रियाज़
नज़्म
ब-ज़ाहिर चंद फ़िरऔ'नों का दामन भर दिया इस ने
मगर गुल-बाग़-ए-आलम को जहन्नम कर दिया इस ने