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नज़्म
जिस से शादाब है मुद्दत से मिरा ज़ौक़-ए-तलब
आज तक़रीब में ये तर्ज़-ए-मुलाक़ात तिरा
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
मौजों की तपिश क्या है फ़क़त ज़ौक़-ए-तलब है
पिंहाँ जो सदफ़ में है वो दौलत है ख़ुदा-दाद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर्मी-ए-दिल थी वही उस की वही ज़ौक़-ए-तलब
ढलते सायों में वो था मर्द-ए-जवाँ की मानिंद
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
अमजद नजमी
नज़्म
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
अपने परवानों को फिर ज़ौक़-ए-ख़ुद-अफ़रोज़ी दे
बर्क़-ए-देरीना को फ़रमान-ए-जिगर-सोज़ी दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी महबूब ऐसी दीदा-ए-क़ुदरत में है
ज़ौक़-ए-हिफ़्ज़-ए-ज़िंदगी हर चीज़ की फ़ितरत में है