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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जैसे ज़ुल्मत में उजालों की खनक आ जाए
जैसे आ जाए तसव्वुर में कोई ज़ोहरा-जबीं
मसूद मैकश मुरादाबादी
नज़्म
ताज़ा-दम भी हूँ मगर फिर ये तक़ाज़ा क्यूँ है
हाथ रख दे मिरे माथे पे कोई ज़ोहरा-जबीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो एक हसीं ज़ोहरा-जबीं मन में बसा जाए
क्या बात है क्या बात है वो कौन है वो कौन
अख़लाक़ अहमद आहन
नज़्म
बलराज कोमल
नज़्म
वो मेरे आसमाँ पर अख़्तर-ए-सुब्ह-ए-क़यामत है
सुरय्या-बख़्त है ज़ोहरा-जबीं है माह-ए-तलअत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
देखता क्या हूँ कि एक बेंच पे चश्मे के क़रीं
महव-ए-नज़ारा-ए-फ़ितरत है कोई ज़ोहरा-जबीं
बेताब अमरोहवी
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं दुनिया की उन ज़ोहरा-जबीनों से
हुई जिन से न मेरे शौक़-ए-रुस्वा की पज़ीराई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
शफ़क़ के नूर से रौशन हैं मेहराबें फ़ज़ाओं की
सुरय्या की जबीं ज़ोहरा का आरिज़ तिम्तिमाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जबीन-ए-ज़ीस्त पे मर्क़ूम है मिरी आवाज़
कि तू ने ज़िंदा किए हुस्न-ओ-इश्क़ के ए'जाज़