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नज़्म
खेल-खिलौनों का हर-सू है इक रंगीं गुलज़ार खिला
वो इक बालक जिस को घर से इक दिरहम भी नहीं मिला
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जो और किसी का मान रखे तो उस को भी अरमान मिले
जो पान खिला दे पान मिले जो रोटी दे तो नान मिले
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा