aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "درخت"
वो इक अंदोह था तारीख़ का अंदोह-ए-सोज़िंदावो नामों का दरख़्त-ए-ज़र्द था और उस की शाख़ों को
दरख़्त उगाएदरख़्त पे
जब दरख़्त ख़ामोश थेऔर बादल शोर कर रहे थे
नज़र है अब्र-ए-करम पर दरख़्त-ए-सहरा हूँकिया ख़ुदा ने न मोहताज-ए-बाग़बाँ मुझ को
बड़ा जहान में तुझ को बना दिया उस नेमुझे दरख़्त पे चढ़ना सिखा दिया उस ने
आज हम हर दरख़्त के सामने सेगुज़रते हुए
हवा की मौज-ए-रवाँ पर दिए जलाए हुएफ़ज़ा में रात गए जब दरख़्त पीपल का!
दरख़्त! मेरे दोस्ततुम मिल जाते हो किसी न किसी मोड़ पर
कोई तो खिलने से पहले कली को लूट गयाकहीं दरख़्त ही अपनी ज़मीं से टूट गया
कभी दरख़्त के नीचेकभी वो हाथ पकड़ते
थे अनारों के बे-शुमार दरख़्तऔर पीपल के साया-दार दरख़्त
मैं ने हर शक्ल को घबरा के ख़ुदा मान लियाकाट के रख दिए संदल के पुर-असरार दरख़्त
मैं गुम्बदों के तमाम राज़ों को जानता हूँदरख़्त मीनार बुर्ज ज़ीने मिरे ही साथी
ख़ुश्क था बिन तेरे दरख़्त-ए-अमलतू ने लगाए हैं ये सब फूल फल
वो शाख़-ओ-दरख़्त की जवानीवो मोर-ओ-मलख़ की ज़िंदगानी
एक दरख़्त हैहम जिस के साए में
मैं दरख़्त बन के खड़ा रहातो वो बेल बन के लिपट गई
लेकिन मैं उसे हाथ नहीं लगा सकतामैं एक दरख़्त के अंदर क़ैद हूँ
जो ख़ाक से बना है वो आख़िर को ख़ाक हैजितने दरख़्त देखो हो बूटे से ता-ब-झाड़
हैं दरख़्त सब्ज़बन बन के सब्ज़ निकले
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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