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नज़्म
दिल में जितना आए लूटें क़ौम को शाह-ओ-वज़ीर
खींच ले ख़ंजर कोई जोड़े कोई चिल्ले में तीर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुझ से पहले कितने शाइ'र आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए कुछ नग़्मे गा कर चले गए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क्या बर्तन सोने चाँदी के क्या मिट्टी की हंडिया चीनी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चले गा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तिरी चीन-ए-जबीं ख़ुद इक सज़ा क़ानून-ए-फ़ितरत में
इसी शमशीर से कार-ए-सज़ा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझे मोजज़ों पे यक़ीं नहीं मगर आरज़ू है कि जब क़ज़ा
मुझे बज़्म-ए-दहर से ले चले