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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से
जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
वही गेसू वही नज़रें वही आरिज़ वही जिस्म
मैं जो चाहूँ तो मुझे और भी मिल सकते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तो तेरी निगाहों में वो ताबनाकी
थी मैं जिस की हसरत में नौ साल दीवाना फिरता रहा हूँ
नून मीम राशिद
नज़्म
उन का आँचल है कि रुख़्सार कि पैराहन है
कुछ तो है जिस से हुई जाती है चिलमन रंगीं