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नज़्म
सब हँसी रोक के कहती हैं निकालो इस को
इक परिंदा किसी इक पेड़ की टहनी पे चहकता है कहीं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मुझे तुम बंद कर दो तीरगी में या सलाख़ों में
परिंदा सोच का लेकिन ये ठहरा हो नहीं सकता
त्रिपुरारि
नज़्म
कोई फ़ल्सफ़ा कोई पाइंदा अक़दार नहीं, मेआर नहीं है
इस पर अहल-ए-दानिश विद्वान, फ़लसफ़ी
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
परिंदा भी नहीं कोई कि जिस के पाँव से कोई
नविश्ता बाँध कर भेजूँ तो समझूँ उस से मिलने का
अब्बास ताबिश
नज़्म
सरिश्क-ए-चश्म-ए-मुस्लिम में है नैसाँ का असर पैदा
ख़लीलुल्लाह के दरिया में होंगे फिर गुहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब्र से नस्ल बढ़े ज़ुल्म से तन मेल करें
ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं