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नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं भी नाकाम-ए-वफ़ा था तो भी महरूम-ए-मुराद
हम ये समझे थे कि दर्द-ए-मुश्तरक रास आ गया
अहमद फ़राज़
नज़्म
तितली का नाज़-ए-रक़्स ग़ज़ाला का हुस्न-ए-रम
मोती की आब गुल की महक माह-ए-नौ का ख़म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़बानों के रस में ये कैसी महक है
ये बोसा कि जिस से मोहब्बत की सहबा की उड़ती है ख़ुश्बू
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
छाई है जो अब तक धरती पर उस रात से लड़ते आए हैं
दुनिया से अभी तक मिट न सका पर राज इजारा-दारी का