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नज़्म
गरचे मिल-बैठेंगे हम तुम तो मुलाक़ात के बा'द
अपना एहसास-ए-ज़ियाँ और ज़ियादा होगा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
लोग पत्थर हैं तो एहसास-ए-ज़ियाँ कैसे हो
किस को फ़ुर्सत है जो पूछे कि मियाँ कैसे हो
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
चाहती हूँ मिरे उश्शाक़ में कुछ फ़र्क़ न हो
मुफ़्त में कश्ती-ए-एहसास-ए-वफ़ा ग़र्क़ न हो
शकील बदायूनी
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
मुझ को एहसास-ए-फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू होता रहा
मैं मगर फिर भी फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू खाता रहा