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नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
हकीम जाने वो कैसी हिकमत से आश्ना था
शजीअ जाने कि बदर ओ ख़ैबर की फ़त्ह-मंदी का राज़ क्या था
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
थे हकीम-ए-शर्क़ से शैख़-ए-मुजद्दिद हम-कलाम
गोश-बर-आवाज़ सब दानिश-वरान-ए-इल्म-ओ-दीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
दुनिया के दाना और हकीम इस ख़ौफ़ से लर्ज़ां थे सब
तुम पर मुबादा इल्म की पड़ जाए परछाईं कहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
बहुत दिनों में रास्ता हरीम-ए-नाज़ का मिला
मगर हरीम-ए-नाज़ तक पहुँच गए तो क्या मिला
आमिर उस्मानी
नज़्म
जाग भी ख़्वाब से ऐ मशरिक़ ओ मग़रिब के हकीम
कि तिरे वास्ते लाया हूँ मैं नज़राना-ए-दिल
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
हरीम-ए-इश्क़ की शम-ए-दरख़्शाँ बुझ के रह जाए
मबादा अजनबी दुनिया की ज़ुल्मत घेर ले तुझ को